Psalms - Chapter 143
Holy Bible

1) प्रभु! मेरी प्रार्थना सुन। मेरी विनय पर ध्यान दे। अपनी सत्यप्रतिज्ञता और न्यायप्रियता के अनुरूप मुझे उत्तर देने की कृपा कर।
2) अपने सेवक को अपने न्यायालय में न बुला, क्योंकि तेरे सामने कोई प्राणी निर्दोष नहीं है।
3) शत्रु ने मुझ पर अत्याचार किया, उसने मुझे पछाड़ कर रौंद डाला। उसने मुझे उन लोगों की तरह अन्धकार में रख दिया, जो बहुत समय पहले मर चुके हैं।
4) इसलिए मेरा साहस टूट रहा है; मेरा हृदय तेरे अन्तरतम में सन्त्रस्त है।
5) मैं बीते दिन याद करता हूँ। मैं तेरे सब कार्यों पर चिन्तन और तेरी दृष्टि का मनन करता हूँ।
6) मैं तेरे आगे हाथ पसारता हूँ, सूखी भूमि की तरह मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है।
7) प्रभु! मुझे शीघ्र उत्तर दे। मेरा साहस टूट गया है। अपना मुख मुझ से न छिपा, नहीं तो मैं अधोलोक में उतरने वालों के सदृश हो जाऊँगा।
8) मुझे प्रातःकाल अपना प्रेम दिखा; मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ। मुझे सन्मार्ग की शिक्षा दे, क्योंकि मैं अपनी आत्मा को तेरी ओर अभिमुख करता हूँ।
9) प्रभु! शत्रुओं से मेरा उद्धार कर, क्योंकि मैं तेरी शरण आया हूँ।
10) प्रभु! मुझे तेरी इच्छा पूरी करने की शिक्षा दे, क्योंकि तू ही मेरा ईश्वर है। तेरा मंगलमय आत्मा मुझे समतल मार्ग पर ले चले।
11) प्रभु! अपने नाम के अनुरूप तू मुझे नवजीवन प्रदान करेगा, अपनी न्यायप्रियता के अनुरूप तू संकट से मेरा उद्धार करेगा।
12) अपनी सत्यप्रतिज्ञता के अनुरूप तू मेरे शत्रुओं को मिटायेगा। तू मेरे सभी विरोधियों का विनाश करेगा ; क्योंकि मैं तेरा सेवक हूँ।

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