Psalms - Chapter 127
Holy Bible

1) यदि प्रभु ही घर नहीं बनाये, तो राजमन्त्रियों का श्रम व्यर्थ है। यदि प्रभु ही नगर की रक्षा नहीं करे, तो पहरेदार व्यर्थ जागते हैं।
2) कठोर परिश्रम की रोटी खानेवालो! तुम व्यर्थ ही सबेरे जागते और देर से सोने जाते हो; वह अपने सोये हुए भक्त का भरण-पोषण करता है।
3) पुत्र प्रभु द्वारा दी हुई विरासत है, सन्तति प्रभु द्वारा प्रदत्त पारितोशिक है।
4) तरुणाई के पुत्र योद्धा के हाथ में बाणों-जैसे हैं।
5) धन्य है वह मनुष्य, जिसने उन से अपना तरकश भर लिया है! जब उसे नगर के फाटकों पर शत्रुओं का सामना करना पड़ेगा, तो वह लज्जित नहीं होगा।

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