Daily Readings

Mass Readings for
11 - Nov- 2025
Tuesday, November 11, 2025
Liturgical Year C, Cycle I
(Tuesday of the Thirty‑second week in Ordinary Time)

Saint Martin of Tours, bishop - Memorial

दैनिक पाठ:
पहला पाठ: Wisdom 2:23-3:9
स्तोत्र: स्तोत्र ग्रन्थ 34:2-3, 16-17, 18-19
सुसमाचार : सन्त लूकस 17:7-10
or
सुसमाचार : सन्त मत्ती 25:31-40

माता मरियम की माला विनती: दु:ख के पाँच भेद


वर्ष का बत्तीसवाँ सप्ताह, मंगलवार - वर्ष 1

पहला पाठ: प्रज्ञा-ग्रन्थ 2:23-3:9
भंजन: स्तोत्र ग्रन्थ 34:2-3, 16-17, 18-19
सुसमाचार: सन्त लूकस 17:7-10

First Reading
प्रज्ञा-ग्रन्थ 2:23-3:9
"मूर्ख लोगों को लगा कि वे मर गये हैं, किन्तु धर्मियों को शांति का निवास मिला है।"

ईश्वर ने मनुष्य को अमर बनाया; उसने उसे अपना ही प्रतिरूप बनाया। शैतान की ईर्ष्या के कारण ही मृत्यु संसार में आयी है। जो लोग शैतान का साथ देते हैं, वे अवश्य ही मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। धर्मियों की आत्माएँ ईश्वर के हाथ में हैं। उन्हें कभी कोई कष्ट नहीं होगा। मूर्ख लोगों को लगा कि वे मर गये हैं – वे उनका संसार से उठ जाना घोर विपत्ति मानते थे और यह समझते थे कि हमारे बीच से चले जाने के बाद उनका सर्वनाश हो गया है। किन्तु धर्मियों को शांति का निवास मिला है। मनुष्यों को लगा कि धर्मियों को दण्ड मिल रहा है, किन्तु वे अमरत्व की आशा करते थे। थोड़ा कष्ट सहने के बाद उन्हें महान् पुरस्कार दिया जायेगा। ईश्वर ने उनकी परीक्षा ली और उन्हें अपने योग्य पाया है। ईश्वर ने घरिया में सोने की तरह उन्हें परख लिया और होम-बलि की तरह उन्हें स्वीकार किया। ईश्वर के आगमन के दिन वे दूँठी के खेत में धधकती चिनगारियों की तरह चमकेंगे। वे राष्ट्रों का शासन करेंगे; वे देशों पर राज्य करेंगे, किन्तु प्रभु ही सदा-सर्वदा उनका राजा बना रहेगा। जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, वे सत्य को जान जायेंगे; जो उनके प्रति ईमानदार हैं, वे बड़े प्रेम से उसके पास रहेंगे; क्योंकि जिन्हें ईश्वर ने चुना है, वे कृपा तथा दया प्राप्त करेंगे।

प्रभु की वाणी।

Responsorial Psalm
स्तोत्र ग्रन्थ 34:2-3, 16-17, 18-19
अनुवाक्य : मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा।

मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा, मेरा कंठ निरन्तर उसकी स्तुति करता रहेगा। मेरी आत्मा प्रभु पर गौरव करेगी। विनम्र, सुन कर, आनन्दित हो उठेंगे।
अनुवाक्य : मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा।

प्रभु की कृपादृष्टि धर्मियों पर बनी रहती है। वह उनकी पुकार पर कान देता है। प्रभु कुकर्मियों से मुँह फेर लेता हैं और पृथ्वी पर से उनकी स्मृति मिटा देता है।
अनुवाक्य : मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा।

धर्मी प्रभु की दुहाई देते हैं। वह उनकी सुनता और हर प्रकार की विपत्ति में उनकी रक्षा करता है। प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिसका मन टूट गया है, वह उन्हें सँभालता है।
अनुवाक्य : मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा।

Gospel
सन्त लूकस 17:7-10
"हम अयोग्य सेवक भर हैं, हमने अपना कर्त्तव्य मात्र पूरा किया है।"

प्रभु ने यह कहा, "यदि तुम्हारा सेवक हल जोत कर या ढोर चरा कर खेत से लौटे तो तुम में ऐसा कौन है जो उस से कहेगा, 'आओ, तुरन्त भोजन करने बैठ जाओ'? क्या वह उस से यह नहीं कहेगा, 'मेरा भोजन तैयार करो। जब तक मैं खा-पी न लूँ, कमर कस कर परोसते रहो। बाद में तुम भी खा-पी लेना'? क्या स्वामी को उस नौकर को इसीलिए धन्यवाद देना चाहिए कि उसने उसकी आज्ञा का पालन किया है? तुम्हारी भी वही दशा है। सभी आज्ञाओं का पालन करने के बाद तुम को कहना चाहिए, 'हम अयोग्य सेवक भर हैं, हमने अपना कर्त्तव्य मात्र पूरा किया है'।"

प्रभु का सुसमाचार।