Daily Readings
Liturgical Year A, Cycle II
Wednesday of Christmas Week
दैनिक पाठ:
पहला पाठ: First John 2:18-21
स्तोत्र: स्तोत्र ग्रन्थ 96:1-2, 11-12, 13
सुसमाचार : सन्त योहन 1:1-18
Saint Sylvester I, pope - Optional Memorial
माता मरियम की माला विनती: महिमा के पाँच भेद
Daily Readings
Wednesday of Christmas Week
पहला पाठ: सन्त योहन का पहला पत्र 2:18-21
भंजन: स्तोत्र ग्रन्थ 96:1-2, 11-12, 13
सुसमाचार: सन्त योहन 1:1-18
First Reading
सन्त योहन का पहला पत्र 2:18-21
“तुम लोगों को पवित्र आत्मा मिला है और तुम सब सत्य जानते हो।”
बच्चो ! यह अंतिम समय है। तुम लोगों ने सुना होगा कि एक मसीह-विरोधी का आना अनिवार्य है। अब तक अनेक मसीह-विरोधी प्रकट हुए हैं; इस से हम जानते हैं कि अंतिम समय आ गया है। वे मसीह-विरोधी हमारा साथ छोड़ कर चले गये, किन्तु वे हमारे अपने नहीं थे। यदि वे हमारे अपने होते, तो वे हमारे ही साथ रहते। वे चले गये, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि उन में कोई भी हमारा अपना नहीं था। तुम लोगों को तो मसीह की ओर से पवित्र आत्मा मिला है और तुम सब सत्य जानते हो। मैं तुम लोगों को इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि तुम सत्य नहीं जानते, बल्कि इसलिए कि तुम सत्य जानते हो और यह भी जानते हो कि हर झूठ सत्य का विरोधी है।
प्रभु की वाणी।
Responsorial Psalm
स्तोत्र ग्रन्थ 96:1-2, 11-12, 13
अनुवाक्य : स्वर्ग में आनन्द हो और पृथ्वी पर उल्लास।
प्रभु के आदर में नया गीत गाओ। समस्त पृथ्वी प्रभु का भजन सुनाये। भजन गाते हुए प्रभु का नाम धन्य कहो। दिन-प्रतिदिन उसका मुक्ति-विधान घोषित करते जाओ।
अनुवाक्य : स्वर्ग में आनन्द हो और पृथ्वी पर उल्लास।
स्वर्ग में आनन्द हो और पृथ्वी पर उल्लास, सागर की लहरें गरज उठें, खेतों के पौधे खिल जायें और वन के सभी वृक्ष आनन्द का गीत गायें।
अनुवाक्य : स्वर्ग में आनन्द हो और पृथ्वी पर उल्लास।
क्योंकि प्रभु का आगमन निशिचत हैं। वह पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है। वह धर्म और सच्चाई से संसार के राष्ट्रों का शासन करेगा।
अनुवाक्य : स्वर्ग में आनन्द हो और पृथ्वी पर उल्लास।
Gospel
सन्त योहन 1:1-18
एव शब्द ने शरीर धारण किया।
आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था। वह आदि में ईश्वर के साथ था। उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ। उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। वह ज्योति अंधकार में चमकती रहती है - अंधकार ने उसे नहीं बुझाया। ईश्वर का भेजा हुआ योहन नामक एक मनुष्य प्रकट हुआ। वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग 'उसके द्वारा विश्वास करें। वह स्वयं ज्योति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था। शब्द वह सच्ची ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अंधकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था। वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ; किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना। वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया। जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सबों को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया है। वे न तो रक्त से, न शरीर की वासना से, और न मनुष्य की इच्छा से, बल्कि ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं। शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा जैसी है - अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण। योहन ने पुकार-पुकार कर उनके विषय में यह साक्ष्य दिया, "यह वही हैं जिनके विषय में मैंने कहा - जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से बढ़कर 'हैं, क्योंकि वह मुझ से पहले थे।” उनकी परिपूर्णता से हम सबों को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है। संहिता तो मूसा के द्वारा दी गयी है, किन्तु अनुग्रह और सत्य येसु मसीह द्वारा मिला है। किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले 'एकलौते, ईश्वर ने उसे प्रकट किया है।
प्रभु का सुसमाचार।