Daily Readings

Mass Readings for
18 - Sep- 2025
Thursday, September 18, 2025
Liturgical Year C, Cycle I
Thursday of the Twenty‑fourth week in Ordinary Time

दैनिक पाठ:
पहला पाठ: First Timothy 4:12-16
स्तोत्र: स्तोत्र ग्रन्थ 111:7-8, 9, 10
सुसमाचार : सन्त लूकस 7:36-50

माता मरियम की माला विनती: ज्योति के पाँच भेद


वर्ष का चौबीसवाँ सप्ताह, बृहस्पतिवार - वर्ष 1

पहला पाठ: तिमथी के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 4:12-16
भंजन: स्तोत्र ग्रन्थ 111:7-8, 9, 10
सुसमाचार: सन्त लूकस 7:36-50

First Reading
तिमथी के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 4:12-16
"अपने तथा अपनी शिक्षा के विषय में सावधान रहो । ऐसा करने से तुम अपनी तथा अपने श्रोताओं की मुक्ति का कारण बनोगे ।"

तुम्हारी कम उम्र के कारण कोई तिरस्कार न करे। तुम वचन, कर्म, प्रेम, विश्वास और शुद्धता में विश्वासियों का आदर्श बनो । मेरे आने तक धर्मग्रन्थ का पाठ करने और प्रवचन तथा शिक्षा देने में लगे रहो। उस कृपादान की उपेक्षा मत करो, जो तुम में विद्यमान है और तुम्हें, भविष्यवाणी के अनुसार, पुरोहित-समुदाय के हस्तारोपण के समय प्राप्त हो गया है। इन बातों का ध्यान रखो और इन में पूर्ण रूप से लीन रहो, जिससे सब लोग तुम्हारी उन्नति देख सकें । तुम इन बातों में दृढ़ बने रहो; अपने तथा अपनी शिक्षा के विषय में सावधान रहो। ऐसा करने से तुम अपनी तथा अपने श्रोताओं की मुक्ति का कारण बनोगे ।

प्रभु की वाणी।

Responsorial Psalm
स्तोत्र ग्रन्थ 111:7-8, 9, 10
अनुवाक्य : प्रभु के कार्य महान् हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)

प्रभु के कार्य सच्चे और न्यायपूर्ण हैं। उसके सभी नियम अपरिवर्तनीय हैं। वे युग-युगों तक बने रहेंगे, उनके मूल में न्याय और सत्य है
अनुवाक्य : प्रभु के कार्य महान् हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)

उसने अपनी प्रजा का उद्धार किया और सदा के लिए अपना विधान निर्धारित किया है। उसका नाम पवित्र और पूज्य है
अनुवाक्य : प्रभु के कार्य महान् हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)

प्रज्ञा प्रभु-भक्ति से प्रारंभ होती है। प्रभु-भक्त अपनी बुद्धिमानी का प्रमाण देते हैं। प्रभु की स्तुति युगानुयुग होती रहेगी ।
अनुवाक्य : प्रभु के कार्य महान् हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)

Gospel
सन्त लूकस 7:36-50
"इसके बहुत-से पाप क्षमा हो गये हैं, क्योंकि इसने बहुत प्यार दिखाया है।"

किसी फरीसी ने येसु को अपने यहाँ भोजन करने का निमंत्रण दिया। वह उस फरीसी के घर आ कर भोजन करने बैठे । नगर की एक पापिनी स्त्री यह जान गयी कि येसु फरीसी के यहाँ भोजन कर रहे हैं। वह संगमरमर के पात्र में इत्र ले कर आयी और रोती हुई येसु के चरणों के पास खड़ी हो गयी। उसके आँसू उनके चरण भिगोने लगे, इसलिए उसने उन्हें केशों से पोंछ लिया और उनके चरणों को चूम-चूम कर उन पर इत्र लगाया। वह फरीसी, जिसने येसु को निमंत्रण दिया था, यह देख कर मन-ही-मन कहने लगा, "यदि यह आदमी नबी होता, तो जरूर जान जाता कि जो स्त्री इसे छू रही है, वह कौन और कैसी है वह तो पापिनी है।" परन्तु येसु ने उस से कहा, "सिमोन, मुझे तुम से कुछ कहना है।" उसने उत्तर दिया, "गुरुवर ! कहिए।" "किसी महाजन के दो कर्जदार थे। एक पाँच सौ दीनार का ऋणी था और दूसरा, पचास का। उनके पास कर्ज अदा करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए महाजन ने दोनों को माफ कर दिया। उन दोनों में से कौन उसे अधिक प्यार करेगा?" सिमोन ने उत्तर दिया, "मेरी समझ में तो वही, जिसका अधिक ऋण माफ हुआ।" येसु ने उससे कहा, "तुम्हारा निर्णय सही है।" तब उन्होंने उस स्त्री की ओर मुड़ कर सिमोन से कहा, "इस स्त्री को देखते हो? मैं तुम्हारे घर आया, तुमने मुझे पैरों के लिए पानी नहीं दिया; पर इसने मेरे पैर अपने आँसुओं से धोये और अपने केशों से पोछे । तुमने मेरा चुम्बन नहीं किया, परन्तु यह, जब से भीतर आयी है, मेरे पैर चुमती रही है। तुमने मेरे सिर में तेल नहीं लगाया, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र लगाया है। इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, इसके बहुत-से पाप क्षमा हो गये हैं, क्योंकि इसने बहुत प्यार दिखाया है। पर जिसे कम क्षमा किया गया, वह कम प्यार दिखाता है।" तब येसु ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं।" साथ भोजन करने वाले मन-ही-मन कहने लगे, "यह कौन है, जो पापों को भी क्षमा करता है?" पर येसु ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है। शांति ग्रहण कर जाओ ।"

प्रभु का सुसमाचार।