Daily Readings

Mass Readings for
27 - Nov- 2025
Thursday, November 27, 2025
Liturgical Year C, Cycle I
Thursday of the Thirty‑fourth week in Ordinary Time

दैनिक पाठ:
पहला पाठ: दानिएल का ग्रन्थ 6:12-28
स्तोत्र: दानिएल का ग्रन्थ 3:68, 69, 70, 71, 72, 73, 74
सुसमाचार : सन्त लूकस 21:20-28

Thanksgiving - Optional Memorial

माता मरियम की माला विनती: ज्योति के पाँच भेद


वर्ष का चौंतीसवाँ सप्ताह, बृहस्पतिवार - वर्ष 1

पहला पाठ: दानिएल का ग्रन्थ 6:12-28
भंजन: दानिएल का ग्रन्थ 3:68, 69, 70, 71, 72, 73, 74
सुसमाचार: सन्त लूकस 21:20-28

First Reading
दानिएल का ग्रन्थ 6:12-28
"ईश्वर ने अपना दूत भेज कर सिंहों के मुँह बन्द कर दिये।”

कुछ लोगों ने दानिएल के यहाँ पहुँचने पर उसे अपने ईश्वर से प्रार्थना और अनुनय-विनय करते पाया। वे राजा से मिलने गये और उसे राजकीय निषेधाज्ञा का स्मरण दिलाते हुए बोले, "राजा! क्या आपने यह निशेधाज्ञा नहीं निकाली कि तीस दिनों तक जो कोई आप को छोड़ कर किसी भी देवता अथवा मनुष्य से प्रार्थना करेगा, वह सिंहों के खड्ड में डाल दिया जायेगा? " राजा ने उत्तर दिया, "यह मेदियों और फ़ारसियों के अपरिवर्तनीय क़ानून के अनुसार सुनिश्चित है।" इस पर उन्होंने राजा से कहा, "दानिएल - यूदा के निर्वासितों में से एक - आपके द्वारा घोषित निषेधाज्ञा की परवाह नहीं करता। वह दिन में तीन बार अपने ईश्वर से प्रार्थना करता है।" राजा को यह सुन कर बहुत दुःख हुआ। उसने दानिएल को बचाने का निश्चय किया और सूर्यास्त तक कोई रास्ता खोज निकालने का प्रयत्न किया। किन्तु उन लोगों ने यह कहते हुए राजा से अनुरोध किया, "राजा! स्मरण रखिए कि मेदियों और फ़ारसियों के क़ानून के अनुसार राजा द्वारा घोषित कोई भी निषेधाज्ञा अथवा आदेश अपरिवर्तनीय है।" इस पर राजा ने दानिएल को ले आने और सिहों के खड्ड में डालने का आदेश दिया। उसने दानिएल से कहा, "तुम्हारा ईश्वर, जिसकी तुम निरन्तर सेवा करते हो, तुम्हारी रक्षा करे।" एक पत्थर खड्ड के द्वार पर रखा गया और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी और अपने सामन्तों की अंगूठी की मुहर लगायी, जिससे कोई भी दानिएल के पक्ष में हस्तक्षेप न कर सके। इसके बाद राजा अपने महल चला गया; उसने उस रात को अनशन किया और अपनी उपपत्नियों को नहीं बुलाया। उसे नींद नहीं आयी और वह सबेरे, पौ फटते ही, उठा और सिंहों के खड्ड की ओर जल्दी-जल्दी चल पड़ा। खड्ड के निकट आ कर उसने दुःख-भरी आवाज में दानिएल को पुकार कर कहा, "ओ दानिएल! जीवन्त ईश्वर के सेवक! तुम जिस ईश्वर की निरन्तर सेवा करते हो, क्या वह तुम को सिंहों से बचा सका?" दानिएल ने राजा को उत्तर दिया, "राजा! आप सदा जीते रहें। मेरे ईश्वर ने अपना दूत भेज कर सिंहों के मुँह बन्द कर दिये। उन्होंने मेरी कोई हानि नहीं की, क्योंकि मैं ईश्वर की दृष्टि में निर्दोष था। राजा! मैंने आपके विरुद्ध भी कोई अपराध नहीं किया।" राजा आनन्दित हो उठा और उसने दानिएल को खड्ड से बाहर निकालने का आदेश दिया। इस पर दानिएल को खड्ड से बाहर निकाला गया; उसके शरीर पर कोई घाव नहीं था, क्योंकि उसने अपने ईश्वर पर भरोसा रखा था। जिन लोगों ने दानिएल पर अभियोग लगाया था, राजा ने उन्हें बुला भेजा और उन को अपने पुत्रों तथा पत्नियों के साथ सिंहों के खड्ड में डाल देने का आदेश दिया। वे खड्ड के फर्श तक भी नहीं पहुँचे थे कि सिंहों ने उन पर टूट कर उनकी सब हड्डियाँ तोड़ डालीं। इसके बाद राजा ने पृथ्वी पर के लोगों, राष्ट्रों और भाषा-भाषियों को लिखा, "आप लोगों को शांति मिले! मेरी राजाज्ञा यह है कि मेरे राज्य के समस्त क्षेत्र के लोग दानिएल के ईश्वर पर श्रद्धा रखें और उस से डरें : क्योंकि वह सदा बना रहने वाला जीवन्त ईश्वर है, उसका राज्य कभी नष्ट नहीं किया जायेगा। और उसके प्रभुत्व का कभी अन्त नहीं होगा। वह रक्षा करता और बचाता है, वह स्वर्ग और पृथ्वी पर चिह्न और चमत्कार दिखाता है, उसने दानिएल को सिंहों के पंजों से छुड़ाया है।"

प्रभु की वाणी।

Responsorial Psalm
दानिएल का ग्रन्थ 3:68, 69, 70, 71, 72, 73, 74
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।

ओस और तुषार प्रभु को धन्य कहें।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।

बर्फ और शीत प्रभु को धन्य कहें।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।

पाला और हिम प्रभु को धन्य कहें।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।

रात और दिन प्रभु को धन्य कहें।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।

ज्योति और अन्धकार प्रभु को धन्य कहें।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।

बिजली और बादल प्रभु को धन्य कहें।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।

समस्त पृथ्वी प्रभु को धन्य कहे।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।

Gospel
सन्त लूकस 21:20-28
"येरुसालेम गैरयहूदी राष्ट्रों द्वारा तब तक रौंदा जायेगा, जब तक उन राष्ट्रों का समय पूरा न हो जाये।"

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "जब तुम लोग देखोगे कि येरुसालेम सेनाओं से घिर रहा है, तो जान लो कि उसका सर्वनाश निकट है। उस समय जो लोग यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जायें; जो येरुसालेम में हों, वे बाहर निकल जायें और जो देहात में हों, वे नगर में न जायें; क्योंकि वे दण्ड के दिन होंगे जब जो कुछ लिखा है, वह पूरा हो जायेगा। उनके लिए शोक, जो उन दिनों गर्भवती अथवा दूध पिलाती होंगी। क्योंकि देश में घोर संकट और इस प्रजा पर प्रकोप आ पड़ेगा। लोग तलवार की धार से मृत्यु के घाट उतारे जायेंगे। उन को बंदी बना कर सब राष्ट्रों में ले जाया जायेगा और येरुसालेम गैरयहूदी राष्ट्रों द्वारा तब तक रौंदा जायेगा, जब तक उन राष्ट्रों का समय पूरा न हो जाये।” "सूर्य, चन्द्रमा और तारों में चिह्न प्रकट होंगे। समुद्र के गर्जन और बाढ़ से व्याकुल हो कर पृथ्वी के राष्ट्र व्यथित हो उठेंगे। लोग विश्व पर आने वाले संकट की आशंका से आतंकित हो कर निष्प्राण हो जायेंगे, क्योंकि आकाश की शक्तियाँ विचलित हो जायेंगी। तब लोग मानव पुत्र को अपार सामर्थ्य और महिमा के साथ बादल पर आते हुए देखेंगे। "जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है।"

प्रभु का सुसमाचार।