1 कुकर्मियोंके कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालोंके विषय डाह न कर!
2 क्योंकि वे घास की नाई झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाई मुर्झा जाएंगे।
3 यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह, और सच्चाई में मन लगाए रह।
4 यहोवा को अपके सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथोंको मूरा करेगा।।
5 अपके मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।
6 और वह तेरा धर्म ज्योति की नाई, और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले की नाई प्रगट करेगा।।
7 यहोवा के साम्हने चुपचाप रह, और धीरज से उसका आस्त्रा रख; उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सुफल होते हैं, और वह कुरी युक्तियोंको निकालता है!
8 क्रोध से पके रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उस से बुराई ही निकलेगी।
9 क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे।
10 थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भलीं भांति देखने पर भी उसको न पाएगा।
11 परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।
12 दुष्ट धर्मी के विरूद्ध बुरी युक्ति निकालता है, और उस पर दांत पीसता है;
13 परन्तु प्रभु उस पर हंसेगा, क्योंकि वह देखता है कि उसका दिन आनेवाला है।।
14 दुष्ट लोग तलवार खींचे और धनुष बढ़ाए हुए हैं, ताकि दीन दरिद्र को गिरा दें, और सीधी चाल चलनेवालोंको वध करें।
15 उनकी तलवारोंसे उन्हीं के हृदय छिदेंगे, और उनके धनुष तोड़े जाएंगे।।
16 धर्मी को थोड़ा से माल दुष्टोंके बहुत से धन से उत्तम है।
17 क्योंकि दुष्टोंकी भुजाएं तो तोड़ी जाएंगी; परन्तु यहोवा धर्मियोंको सम्भालता है।।
18 यहोवा खरे लोगोंकी आयु की सुधि रखता है, और उनका भाग सदैव बना रहेगा।
19 विपत्ति के समय, उनकी आशा न टूटेगी और न वे लज्जित होंगे, और अकाल के दिनोंमें वे तृप्त रहेंगे।।
20 दुष्ट लोग नाश हो जाएंगे; और यहोवा के शत्रु खेत की सुथरी घास की नाई नाश होंगे, वे धूएं की नाई बिलाय जाएंगे।।
21 दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं परनतु धर्मीं अनुग्रह करके दान देता है;
22 क्योंकि जो उस से आशीष पाते हैं वे तो पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, परन्तु जो उस से शापित होते हैं, वे नाश को जाएंगे।।
23 मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है;
24 चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थांभे रहता है।।
25 मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है।
26 वह तो दिन भर अनुग्रह कर करके ऋण देता है, और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है।।
27 बुराई को छोड़ भलाई कर; और तू सर्वदा बना रहेगा।
28 क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; और अपके भक्तोंको न तजेगा। उनकी तो रक्षा सदा होती है, परन्तु दुष्टोंका वंश काट डाला जाएगा।
29 धर्मी लोग पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।।
30 धर्मी अपके मुंह से बुद्धि की बातें करता, और न्याय का वचन कहता है।
31 उसके परमेश्वर की व्यवस्था उसके हृदय में बनी रहती है, उसके पैर नहीं फिसलते।।
32 दुष्ट धर्मी की ताक में रहता है। और उसके मार डालने का यत्न करता है।
33 यहोवा उसको उसके हाथ में न छोड़ेगा, और जब उसका विचार किया जाए तब वह उसे दोषी न ठहराएगा।।
34 यहोवा की बाट जोहता रह, और उसके मार्ग पर बना रह, और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिक्कारनेी कर देगा; जब दुष्ट काट डाले जाएंगे, तब तू देखेगा।।
35 मैं ने दुष्ट को बड़ा पराक्रमी और ऐसा फैलता हुए देखा, जैसा कोई हरा पेड़ अपके निज भूमि में फैलता है।
36 परन्तु जब कोई उधर से गया तो देखा कि वह वहां है ही नहीं; और मैं ने भी उसे ढूंढ़ा, परन्तु कहीं न पाया।।
37 खरे मनुष्य पर दृष्टि कर और धर्मी को देख, क्योंकि मेल से रहनेवाले पुरूष का अन्तफल अच्छा है।
38 परन्तु अपराधी एक साथ सत्यानाश किए जाएंगे; दुष्टोंका अन्तफल सर्वनाश है।।
39 धर्मियोंकी मुक्ति यहोवा की ओर से होती है; संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़ है।
40 और यहोवा उनकी सहाथता करके उनको बचाता है; वह उनको दुष्टोंसे छुड़ाकर उनका उद्वार करता है, इसलिथे कि उन्होंने उस में अपक्की शरण ली है।।