1 दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।
2 क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापके हो, उसी से तुम्हारे लिथे भी नापा जाएगा।
3 तू क्योंअपके भाई की आंख के तिनके को देखता है, और अपक्की आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूफता और जब तेरी ही आंख मे लट्ठा है, तो तू अपके भाई से क्योंकर कह सकता है, कि ला मैं तेरी आंख से तिनका निकाल दूं।
4 हे कपक्की, पहले अपक्की आंख में से लट्ठा निकाल ले, तक तू अपके भाई की आंख का तिनका भली भांति देखकर निकाल सकेगा।।
5 पवित्र वस्तु कुत्तोंको न दो, और अपके मोती सूअरोंके आगे मत डालो; ऐसा न हो कि वे उन्हें पांवोंतले रौंदें और पलटकर तुम को फाड़ डालें।।
6 मोंगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिथे खोला जाएगा।
7 क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है और जो खटखटाता है, उसके लिथे खोला जाएगा।
8 तुम में से ऐसा कौन मनुष्य है, कि यदि उसका पुत्र उस से रोटी मांगे, तो वह उसे पत्यर दे
9 वा मछली मांगे, तो उसे सांप दे
10 सो जब तुम बुरे होकर, अपके बच्चोंको अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपके मांगनेवालोंको अच्छी वस्तुएं क्योंन देगा
11 इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साय करें, तुम भी उन के साय वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्या और भविष्यद्वक्तओं की शिझा यही है।।
12 सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और चाकल है वह मार्ग जो विनाश को पहुंचाता है; और बहुतेरे हैं जो उस से प्रवेश करते हैं।
13 क्योंकि सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है, और योड़े हैं जो उसे पाते हैं।।
14 क्योंकि सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है, और योड़े हैं जो उसे पाते हैं।
15 फूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ोंके भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेडिए हैं।
16 उन के फलोंसे तुम उन्हें पहचान लोगे क्या फाडिय़ोंसे अंगूर, वा ऊंटकटारोंसे अंजीर तोड़ते हैं
17 इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है।
18 अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है।
19 जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है।
20 सो उन के फलोंसे तुम उन्हें पहचान लोगे।
21 जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।
22 उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्क़ाओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए
23 तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।
24 इसलिथे जो कोई मेरी थे बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुिद्वमान मनुष्य की नाई ठहरेगा जिस ने अपना घर चटान पर बनाया।
25 और मेंह बरसा और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चक्कीं, और उस घर पर ट?रें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उस की नेव चटान पर डाली गई यी।
26 परन्तु जो कोई मेरी थे बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस निर्बुद्धि मनुष्य की नाईं ठहरेगा जिस ने अपना घर बालू पर बनाया।
27 और मेंह बरसा, और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चक्कीं, और उस घर पर ट?रें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।।
28 जब यीशु थे बातें कह चुका, तो ऐसा हुआ कि भीड़ उसके उपकेश से चकित हुई।
29 क्योंकि वह उन के शास्त्रियोंके समान नहीं परन्तु अधिक्कारनेी की नाई उन्हें उपकेश देता या।।