Sirach - Chapter 48
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1) तब एलियाह अग्नि की तरह प्रकट हुए। उनकी वाणी धधकती मशाल के सदृश थी।
2) उन्होंने उनके देश में अकाल भेजा और अपने धर्मोत्साह में उनकी संख्या घटायी।
3) उन्होंने प्रभु के वचन से आकाश के द्वार बन्द किये और तीन बार आकाश से अग्नि गिरायी।
4) एलियाह! आप अपने चमत्कारों के कारण कितने महान् है! आपके सदृश होने का दावा कौन कर सकता है!
5) आपने सर्वोच्च प्रभु की आज्ञा से एक मनुष्य को मृत्यु और अधोलोक से वापस बुलाया।
6) आपने राजाओें का सर्वनाश किया, प्रतिष्टित लोगों केा गिरा दिया और सहज ही उनका बल तोड़ दिया।
7) आपने सीनई पर्वत पर दोषारोपण और होरेब पर्वत पर दण्डाज्ञा सुनी।
8) आपने प्रतिशोध करने वाले राजाओं का और अपने उत्तराधिकारियों के रूप में नबियों का अभिशेक किया।
9) आप अग्नि की आँधी में अग्निमय अश्वों के रथ में आरोहित कर लिये गये।
10) आपके विषय में लिखा है, कि आप निर्धारित समय पर चेतावनी देने आयेंगे, जिससे ईश्वरीय प्रकोप भड़कने से पहले ही आप उसे शान्त करें, पिता और पुत्र का मेल करायें और इस्राएल के वंशों का पुनरुद्धार करें।
11) धन्य हैं वे, जिन्होंने आपके दर्शन किये, जो आपके प्रेम से सम्मानित हुए!
12) हमें तो जीवन मिला है, किन्तु मृत्यु के बाद हमें आपके सदृश नाम नहीं मिलेगा।
13) जब एलियाह बवण्डर में ओझल हो गये, तो एलीषा को उनकी आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त हुई। वे अपने जीवनकाल में किसी भी शासक से नहीं डरते थे। कोई भी मनुष्य उन्हें अपने वश में नहीं कर सका।
14) कोई भी कार्य उनकी शक्ति के परे नहीं था और मृत्यु के बाद भी उनके शरीर में नबी का सामर्थ्य विद्यमान था।
15) उन्होंने अपने जीवनकाल में चमत्कार और मृत्यु के बाद भी अपूर्व कार्य कर दिखाये।
16) यह सब होते हुए भी लोगों ने पश्चात्तप नहीं किया और पाप करना नहीं छोड़ा। इसलिए वे अपने देश से निर्वासित किये गये और सारी पृथ्वी पर बिखेरे गये।
17) बहुत कम लोग बच गये और दाऊद के घराने का एक शासक शेष रहा।
18) उन में कुछ लोगों ने वही किया, जो प्रभु के प्रिय है, किन्तु अन्य लोग पाप करते रहे।
19) हिजकीया ने अपने नगर को किलाबन्द किया और वे उसके भीतर पानी लाये। उन्होंने लोहे के औज़ारों से चट्टान खुदवा कर जलाषय बनवाये।
20) उनके राज्यकाल में सनहेरीब ने आक्रमण किया। उसने अपने प्रधान रसद-प्रबन्धक को भेजा, जिसने सियोन पर हाथ उठाया और अपने घमण्ड में ईश्वर की निन्दा की।
21) तब उनका हृदय और उनके हाथ काँपने लगे और उन्हें प्रसव-पीड़िता की-सी वेदना होने लगी;
22) उन्होंने हाथ पसार कर दयालु प्रभु से प्रार्थना की और परमपावन प्रभु ने शीघ्र ही उनकी सुनी।
23) उसने उनके पापों को याद नहीं किया। उसने उन्हें शत्रुओें के हाथ नही पड़ने दिया और उन्हें इसायाह द्वारा छुड़ाया।
24) उसने अस्सूरियों का शिविर उजाड़ा और अपने दूतों द्वारा उनका विनाश किया।
25) हिज़कीया ने वही किया, जो प्रभु को प्रिय है और वे अपने पिता दाऊद के मार्ग के प्रति ईमानदार रहे, जिनका निर्देश नबी इसायाह करते थे जो एक महान् और विश्वसनीय दृष्टा प्रमाणित हुए।
26) इसायाह के दिनों में सूर्य के पीछे हटने पर राजा का जीवन बढ़ा दिया गया।
27) इसायाह ने दिव्य शक्ति से प्रेरित हो कर अन्तिम दिनों के दृष्यों का दर्शन किया, उन्होंने सियोन में शोक मनाने वालों को सान्त्वना दी, अनन्त काल तक का भविष्य घोषित किया
28) और घटित होने के पूर्व गुप्त बातों को प्रकट किया।

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