Daniel - Chapter 14
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1) राजा अस्तयागेस अपने पितरों से जा मिला और फारसी सीरूस उसके राज्य का उत्तराधिकारी हुआ।
2) दानिएल उस समय राजा का मंत्री और उसके सब मित्रों में अधिक प्रतिष्ठित था।
3) बाबुलवासी एक बेलदेवता नामक मूर्ति की पूजा करते और उसे प्रतिदिन बारह मन मैदा, चालीस भेडे़ और छः मटके अंगूरी चढाया करते थे।
4) राज की भी उस में आस्था थी और प्रतिदिन उसकी पूजा करने जाया करता था। किन्तु दानिएल अपने ही ईश्वर की पूजा करता था।
5) एक दिन राजा ने उस से पूछा, "तुम बेलदेवता की पूजा क्यों नहीं करते?" उसने उत्तर दिया, "मैं हाथ की बनायी मूर्तियों की पूजा नहीं करता। मैं तो जीवन्त ईश्वर, स्वर्ग और पृथ्वी से स्रष्टा और जिसका अधिकार सारे शरीरधारियों पर है, उसकी पूजा करता हूँ।"
6) राजा ने उस से पूछा, "क्या तुम बेलदेवता को जीवन्त ईश्वर नहीं मानते? क्या तुम यह नहीं देखते कि वह प्रतिदिन कितना खाता-पीता है?"
7) तब दानिएल ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया "राजा! धोखा मत खाइए। वह तो भीतर से मिट्टी और बाहर से कांसा है; उसने न तो कभी कुछ खाया और न पिया।"
8) इस पर राजा ने क्रोधित हो कर अपने पुजारियों को बुला कर उन से कहा, "यदि तुम मुझे यह नहीं बताओगे कि यह भोजन कौन खाता है, तो तुम्हें मरना होगा।
9) और यदि तुम यह प्रमाणित कर दोगे कि स्वयं बेलदेवता उसे खाता है, तो दानिएल को मरना होगा; क्योंकि उसने बेलदेवता का उपहास किया है।" तब दानिएल ने राजा से कहा, "जैसा आप कहते हैं, वैसा ही हो"।
10) अपनी पत्नियों और बच्चों के अतिरिक्त बेलदेवता के पुजारियों की संख्या सत्तर थी। इसके बाद राजा दानिएल के साथ बेलदेवता के मन्दिर पहुँचा।
11) बेलदेवता के पुजारियों ने कहा, "देखिए, जब हम लोग बाहर चले जायें, तब राजा! आप भोजन मेज पर रखें, अंगूरी को मिला कर रख दे और फिर दरवाज़ा लगा कर उस पर अपनी मुहर वाली अंगूठी की मुद्रा लगा दे।
12) और सबेरे जब आप वापस आयें और यह न पाये कि बेलदेवता सब कुछ खा गया है, ते हमें मार डाले, नहीं तो दानिएल को, जो हमारी निद्रा कर रहा है।"
13) वे निश्चिन्त थे, क्योंकि उन्होंने मेज़ के नीचे गुप्त द्वार बना रखा था उस में से वे अन्दर चले जाया करते और चढायी सामग्री ले कर खा लिया करते थे।
14) उनके बाहर निकलने पर राजा ने भोज्य-सामग्री बेलदेवता के सामने रख दी। इसके बाद दानिएल ने अपने सेवकों के द्वारा राख मँगवा कर केवल राजा की ही उपस्थिति में, उसे सारे मंदिर में छितरा दिया। बाहर निकल कर उन्होंनें दरवाज़ा बन्द कर लिया, उस पर राजा की मुहर वाली अंगूठी की मुद्रा लगा दी और चले गये।
15) रात में पुजारी अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ हमेशा की तरह आये और सब कुछ खा-पी गये।
16) दूसरे दिन राजा बडे सबेरे जग कर आया। दानिएल भी उसके साथ था।
17) राजा ने पूछाा, "दानिएल! मुहरें टूटी तो नहीं?" उसने उत्तर दिया, "नहीं, टूटी नहीं है राजन्!
18) किवाड खुले तो राजा ने मेज की ओर देखा और उच्च स्वर में बोल उठा, "बेलदेवता! तू महान् है! तेरे सम्बन्ध में कोई धोखे की बात नहीं, बिल्कुल नहीं!"
19) किन्तु दानिएल हँसा और उसने यह कहते हुए राजा को अन्दर जाने से रोक लिया, "जरा फर्श की ओर तो ध्यान दीजिएः देखिए कि ये पदचिन्ह किनके हैं।"
20) राजा ने कहा, "हाँ मैं पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के पदचिन्ह देख रहा हूँ"।
21) इस पर राजा बहुत कुपित हुआ और उसने उनकी पत्नियों और बच्चों-सहित पुजारियों को गिरफ्तार करवाया। उन्हें उन गुप्त द्वारों को बतलाना पड़ा, जिन में से आ कर वे मेज़ पर रखी चीजें खाते थे।
22) इस पर राजा ने उन्हें मरवा डाला और बेलदेवता की मूर्ति दानिएल को सौंप दी। दानिएल ने उसे तथा उसका मन्दिर नष्ट करा डाला।
23) वहाँ एक बड़ा पंखदार सर्प भी था, जिसकी बाबुल के निवासी पूजा करते थे।
24) राजा ने दानिएल से कहा, "तुम इसके विषय में यह नहीं कह सकते हो कि यह देवता जीवन्त नहीं है। इसलिए इसकी पूजा करो।"
25) पर दानिएल ने कहा, "मैं अपने प्रभु-ईश्वर की ही पूजा करता हँ, क्योंकि वही जीवन्त-ईश्वर है।
26) राजन्! आप मुझे अनुमति दें, तो मैं इस सर्प को बिना तलवार या डण्डे के ही मार डालूँ।" राजा ने कहा, "मैं तुम्हें अनुमति देता हूँ"।
27) इस पर दानिएल ने डामर, चरबी और केशों को एक साथ उबाला और उनके लड्डू बना कर उन्हें सर्प के मुँह में डाल दिया। उन्हें खा कर सर्प फूल कर फट गया। तब उसने कहा, "देखिए आप किसकी पूजा करते रहे हैं!"
28) जब बाबुल-निवासियों ने ये बातें सुनी, तो वे क्रोध से उबल पडे औश्र राजा का विरोध कर कहने लगे, "राजा यहूदी बन गया है। उसने बेलदेवता को नष्ट कर डाला, सर्प को मरवा दिया और पुजारियों का वध कराया।"
29) इसलिए वे राजा के पास जा कर कहने लगे, "दानिएल को हमारे हवाले कर दीजिए, नहीं तो हम परिवार-सहित आप को मार डालेंगे"।
30) जब राजा ने उनका आग्रह सुना, तो उसने विवश हो कर दानिएल को उनके हवाले कर दिया।
31) उन्होंने उसे सिंहों के खड्ड में डाल दिया, जहाँ वह छः दिन पडा रहा।
32) उस खड्ड में सात सिंह थे। रोज़ उन्हें दो आदमी और दो भेडे दी जाती थी; किन्तु इस बीच वे नहीं दी गयी, जिससे वे दानिएल को ही फाड खायें।
33) उसी समय यहूदिया देश में हबक्कूक नाम का एक नबी रहता था। उसने एक बरतन में शोरबा और रोटी का चुरमा बना लिया था और उसे लुनेरों के पास खेत में ले जा रहा था।
34) तभी प्रभु के एक दूत ने हबक्कूक से कहा, "अपने पास का यह भोजन बाबुल के सिंहों के खड्ड में दानिएल के पास ले जाओ"।
35) हबक्कूक ने हा, "स्वामी! मैंने तो कभी बाबुल देखा ही नहीं और न उस खड्ड का मुझे पता है"।
36) तब प्रभु के दूत ने उसके सिर की चोटी पकड ली और उसके सिर के केश पकड कर उसे अपनी पावन शक्ति के झोंकों से ले जा कर बाबुल में खड्ड के पास छोड दिया।
37) हबक्कूक ने पुकारा, "दानिएल, दानिएल! यह भोजन लो, जिसे ईश्वर ने तुम्हारे लिए भेजा है"।
38) दानिएल ने कहा, "ईश्वर! तूने मेरी ओर ध्यान दिया। तू अपने भक्तों को नहीं त्यागता"।
39) दानिएल उठ कर खाने लगा। ईश्वर के दूत ने हबक्कूक को फिर उसके स्थान पर पहुँचा दिया।
40) सातवें दिन राजा दानिएल के लिए शोक मनाने वहाँ पहुँचा। किन्तु जब उसने खड्ड के पास जा कर अन्दर दृष्टि डाली, तो देखा कि दानिएल बैठा है।
41) इस पर वह जोर से चिल्ला उठा, "दानिएल के प्रभु-ईश्वर! तू महान् है और तेरे सिवा कोई दूसरा नहीं है"।
42) फिर उसने उसे बाहर निकालने की आज्ञा दी आर उन लागों को, जो उसे मिटा डालना चाहते थे, उसी खड्ड में डलवा दिया। उसकी आँखों के सामने ही वे तुरन्त निगल लिये गये।

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