Baruch - Chapter 6
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1) यह उन पत्र की प्रतिलिपि है, जिसे यिरमियाह ने उन बन्दियों के पास भेजा था, जो बाबुल-निवासियों के राजा द्वारा बाबुल ले जाये जा रहे थे, जिससे वह उन्हें ईश्वर का दिया हुआ सन्देश सुनाये। 1- तुमने प्रभु के विरुद्ध पाप किये, इस कारण बाबुल-निवासियों के राजा नबुकदनेजर द्वारा तुम बन्दी बना कर बाबुल ले जाये जाओगे।
2) बाबुल पहुँच कर तुम्हें वहाँ बहुत वर्षों तक, दीर्घ काल तक, सात पीढियों तक रहना पडेगा। इसके बाद मैं तुम्हें वहाँ से सकुशल लौटाऊँगा।
3) अब तुम बाबुल में चाँदी, सोने और लकड़ी के बनाये हुए देवताओं को देखोगे, जो कन्धों पर उठा कर ले जाये जाते हैं और जिन पर गैर-यहूदी राष्ट्र श्रद्धा रखते हैं।
4) तुम सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि तुम गैर-यहूदियों-जैसे हो जाओ और उन देवताओं पर श्रद्धा रखो।
5) जब तुम भीड़ को उन देवताओं की आराधना करते और उन्हें जुलूस में ले जाते देखोगे, तो मन में यह कहो, “प्रभु! तेरी ही आराधना करनी चाहिए“;
6) क्योंकि मेरा दूत तुम्हारे साथ है और वह तुम्हारे जीवन की चिन्ता करेगा।
7) उन देवताओं की जिह्वा शिल्पी द्वारा गढ़ी हुई है। उनका शरीर चाँदी और सोने से मढ़ा हुआ है। वे मिथ्या हैं और बोल नहीं सकते।
8) वे लोग अपने देवताओं के लिए सोने के मुकुट बनवाते हैं, मानो वे अलंकरणप्रिय कन्याएँ हो।
9) पुजारी कभी-कभी वह सोना और चाँदी अपने लिए काम में लाते और छज्जे पर की देवदासियों को भी उपहार के रूप में देते हैं।
10) चाँदी, सोने और लकड़ी के उन देवताओं को मनुष्यों की तरह वस्त्र पहनाये जाते हैं, किन्तु उन वस्त्रों पर जंग लगता हैं और वे कीडों का आहार बन जाते हैं।
11) वे देवता बैंगनी वस्त्रों से सुसज्जित हैं, किन्तु मन्दिर की धूल की मोटी परत उनके चेहरों पर से पोंछनी पड़ती है।
12) कोई देवता क्षेत्रीय दण्डाधिकारी की तरह हाथ में राजदण्ड धारण किये हैं, यद्यपि वह अपने प्रति अपराध करने वाले को मृत्युदण्ड देने में असमर्थ है।
13) कोई दाहिने हाथ में तलवार और फरसा धारण किये हैं, यद्यपि वह न तो युद्ध से और न डाकुओं से अपनी रक्षा कर सकता है।
14) इस से पता चलता है कि देवता नहीं हैं। इसलिए उन से मत डरो।
15) जैसे किसी आदमी का घड़ा टूट जाने पर बेकार हो जाता है, वैसे ही बेकार उनके देवता है, जिनकी प्रतिष्ठा उन्होंने उनके मन्दिरों में की है।
16) उनकी आँखें दर्शन करने वालों के पैरों से उड़ने वाली धूल से ढक जाती हैं।
17) जिस प्रकार राजा के प्रति अपराध करने वाले व्यक्ति के चारों ओर सब दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं, क्योंकि उसे प्राणदण्ड मिला है, उसी प्रकार पूजारी फाटकों, अर्गलाओं और सिटकिनियों से मन्दिर को सुदृढ़ बना देते हैं, जिससे कहीं डाकू देवमूर्तियों की चोरी न कर लें।
18) पुजारी अपने लिए कम, मूर्तियों के लिए अधिक दीपक जलाते हैं, यद्यपि वे उन में एक भी नहीं देख सकती।
19) उनकी दशा उनके मन्दिरों की धरन-जैसी है, जिसके विषय मे यह कहा जाता है कि वह भीतर से खायी हुई है। उन्हें पता भी नहीं चलता कि उन्हें और उनके वस्त्र कीड़े खया करते है।
20) मन्दिर में धुएँ से उनके चेहरे काले हो जाते हैं।
21) चमगादड़ अबाबीलें और अन्य पक्षी उनके शरीर और सिर के ऊपर मँडराते हैं; बिल्लियाँ भी उन पर बैठ जाती हैं।
22) इस से तुम जान जाओगे कि वे देवता नहीं हैं। इसलिए उन से मत डरो।
23) यदि कोई व्यक्ति उन पर मढ़ा हुआ सोना साफ़ नही करें, तो स्वयं उसे नहीं चमका सकतीं। जब वे मूर्तियाँ ढाली गयी तो उन्हें उसका पता नहीं चला।
24) निप्राण होने पर भी वे मूर्तियाँ भारी दामों से खरीदी जाती हैं।
25) उनके पैर नहीं होते, इसलिए वे मनुष्यों के कन्धों पर उठायी जाती हैं और सबों को उनकी असमर्थता का पता चलता है। उनके उपासकों को भी इस पर लज्जा होती है कि जब कोई मूर्ति गिर जाती है, तो उन्हें उसे उठाना पड़ता है।
26) यदि वे उन्हें खड़ा कर देते हैं, तो वे हिल नहीं सकती; यदि वे झुकती है, तो वे स्वयं खड़ी नहीं हो सकती। फिर भी उन्हें मृतकों की तरह भेंट चढ़ायी जाती है।
27) पुजारी उन पर चढ़ाये हुए बलि-पशु बेचते और उन से लाभ उठाते हैं। उनकी पत्नियाँ कुछ अंश खरे पानी में डाल कर बिगड़ने से बचाती, किन्तु भिखारी या असहाय को कुछ नहीं देतीं। रजस्वला और अशुद्ध स्त्रियाँ उन को अर्पित चढ़ावे छूती हैं।
28) इस से तुम जान जाते हो कि वे देवता नहीं; उन से मत डरो।
29) स्त्रियाँ उन चाँदी, सोने और लकड़ी के देवताओं की सेवा करती हैं, तो उन मूर्तियों को देवता क्यों माना जाये?
30) पुजारी फटे कपड़े पहने, सिर और दाढी मूँड़े नंगे सिर उनके मंदिरों में बैठते हैं।
31) वे मृतक-भोजों में सम्मिलित अतिथियों की तरह अपने देवताओं के सामने चिल्लाते और शोर मचाते हैं।
32) पुजारी उनके वस्त्र चुरा कर ले जाते हैं और उन्हें अपनी पत्नियों और बच्चों को पहनाते हैं।
33) यदि कोई उन देवताओं के साथ अच्छा या बुरा व्यवहार करे, तो वे उनके विषय में कुछ नहीं कर सकते। वे न तो किसी को राजा बना सकते और न किसी को सिंहासन से उतार सकते।
34) वे न तो धन दे सकते और न कोई सिक्का। यदि कोई व्यक्ति उनके लिए मन्नत माने और उसे पूरी न करे, तो वे उस से लेखा नहीं माँगेंगे।
35) वे न तो मृत्यु से किसी मनुष्य की रक्षा कर सकते और न बलवान् के हाथ से दुर्बल को छुड़ा सकते।
36) वे न तो अन्धे को दृष्टि प्रदान कर सकते और न निस्साहय को सहारा दे सकते।
37) वे विधवाओं पर दया नहीं करते और अनाथों की सुधि नहीं लेते।
38) वे पर्वत के पत्थरों के सदृश हैं, लकड़ी के ऐसे टुकड़े हैं, जो सोने और चाँदी से मढ़ दिये गये हैं। जो लोग उनकी उपासना करते हैं, उन्हें लज्जित होना पडेगा।
39) इसलिए लोग यह कैसे सोच या कह सकते हैं कि वे देवता हैं?
40) इसके अतिरिक्त खल्दैयी भी उनका अपमान करते हैं। जब वे किसी गूँगे को देखते, जो बोल नहीं सकता, तो वे उसे बेल के सामने ले जा कर प्रार्थना करते हैं कि वह उसे बोलने की शक्ति दे, मानो बेल उनकी प्रार्थना सुन सकता है।
41) वे इस पर विचार-विमर्श और इन देवताओं का परित्याग नहीं कर पाते, क्योंकि उन में समझ नहीं है।
42) वहाँ की स्त्रियाँ सिर पर डोरियाँ लपेट कर सड़क पर बैठी हुई भूसी जलाती हैं।
43) जब उन में किसी को कोई पथिक ले जाता और उस से प्रसंग करता है, तो वह लौट कर अपनी पड़ोसिन की हँसी उड़ाती है, जो नहीं चुनी गयी और जिसकी डोरियाँ सिर पर से नहीं उतारी गयीं।
44) उन देवताओं से जो कुछ सम्बन्धित है, वह सब धोखा है। तो लोग यह कैसे सोच या कह सकते हैं कि वे देवता हैं?
45) बढ़इयों और सुनारों ने उन्हें जैसा बनाना चाहा, उस से भिन्न वे और कुछ नहीं हो सकतीं।
46) उन मूर्तियों के रचयिता बहुत समय तक जीवित नहीं रहते; इसलिए उनके द्वारा बनायी वस्तुएँ देवता कैसे हो सकती हैं?
47) इस प्रकार वे लोग अपने बाद की पीढ़ियों के लिए धोखा और कलंक छोड़ जाते हैं।
48) जब उन देवताओं को युद्ध या विपत्तियों का सामना करना पड़ता है, तो पुजारी आपस मे यह परामर्श करते हैं कि हम उन्हें ले जा कर कहाँ छिपायें।
49) वे क्यों नहीं समझते कि जो मूर्तियाँ युद्ध या विपत्तियों से अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं वे देवता नहीं हो सकती?
50) वे सोने और चाँदी से मढ़ी हुई वस्तुएँ हैं; इसलिए बाद में यह मानना होगा कि वे धोखा मात्र हैं। सभी राष्ट्रों और राजाओं के लिए यह स्पष्ट होगा कि वे देवता नहीं, बल्कि मनुष्यों के हाथों की कृतियाँ हैं, जिन में कोई दिव्य शक्ति विद्यमान नहीं।
51) कौन और प्रमाण चाहता है कि वे देवता नहीं हैं?
52) वे न तो देश पर किसी राजा को नियुक्त करतीं और न मनुष्यों को वर्षा प्रदान करती।
53) वे न तो किसी को न्याय दिलातीं और न अन्याय रोकती हैं। वे आकाश और पृथ्वी के बीच उडने वाले कौओं की तरह असमर्थ हैं।
54) यदि सोने और चाँदी से मढ़ी हुई लकड़ी की उन देवमूर्तियों के मन्दिर में आंग लग जाती है, तो उनके पुजारी भाग कर बच जाते हैं, किंतु वे स्वयं धरनों के समान भस्म हो जाती हैं।
55) वे राजा या शत्रु का विरोध करने में असमर्थ हैं।
56) तो लोग यह कैसे सोच या कह सकते हैं कि वे देवता हैं?
57) सोने और चाँदी से मढ़ी हुई लकड़ी की वे देवमूर्तियाँ न तो चोरों और न लुटेरों से बच सकती हैं। ये लोग, जो उन से अधिक बलवान् हैं, सोना, चाँदी और उन्हें ढकने वाले वस्त्र उतार कर चले जाते हैं और वे उन से अपनी रक्षा नहीं कर पाती।
58) वह राजा, जो अपने अधिकार की रक्षा करने में समर्थ हैं; या घर का वह कलश, जो मालिक के काम आता है; या वह द्वार, जिस से घर का सामान सुरक्षित रहता है; या राजमहल में लकड़ी का खम्भा- ये सब उन झूठी देवमूर्तियों से श्रेष्ठ हैं।
59) सूर्य, चन्द्रमा और तारे चमकते हैं और प्रभु के आदेश के अनुसार मनुष्यों की सेवा करते हैं।
60) कौंधती हुई बिजली भी, जो देखने में सुन्दर है और हवा भी, जो हर प्रदेश में बहती है।
61) जब ईश्वर बादलों को समस्त पृथ्वी पर मँडराने का आदेश देता है, तो वे उसका पालन करते हैं। जो आग ऊपर से आ कर पहाड़ और वन जालाती है, वह भी वही काम करती है, जो उसे सौंपा गया है।
62) सौन्दर्य या सामर्थ्य की दृष्टि से वू मूर्तियाँ इन में से किसी का मुक़ाबला नहीं कर सकती।
63) वे न तो न्याय दिला सकतीं और न किसी का उपकार कर सकतीं। इस से पता चलता है कि उनके विषय में न तो माना या न कहा जा सकता है कि वे देवता हैं।
64) इसलिए तुम जानते हो वे देवता नहीं हैं; उन से मत डरो।
65) वे किसी राजा को न तो अभिशाप दे सकतीं और न आशीर्वाद।
66) वे न तो राष्ट्रों को आकाश में चिन्ह दिखा सकती, न सूर्य की तरह चमक सकतीं और न चन्द्रमा की तरह प्रकाश दे सकती हैं।
67) जंगली पशु उन से श्रेष्ठ हैं; क्यों कि वे कहीं भाग कर अपनी रक्षा करने में समर्थ हैं।
68) इन सब बातों से किसी भी तरह ज्ञात नहीं होता है कि देवता हैं। इसलिए उन से मत डरो।
69) जैसे ककड़ी के खेत का चंचा-पुरुष किसी की रक्षा नहीं कर सकता, वैसे ही सोने और चाँदी से मढी हुई लकड़ी की उनकी वे देव-मूर्तियाँ भी।
70) सोने और चाँदी से मढ़ी हुई उन लोगों की लडकी की देवमूर्तियाँ बगीचे की उस कँटीली झाड़ी के सदृश हैं, जिस पर पक्षी बैठ जाते हैं, या उस शव के समान, जो अंँधेरी कब्र्र में रखा हआ है।
71) यदि तुम देखोगी कि बैंगनी और मलमल के उनके वस्त्र सड़ जाते हैं, तो समझोगे कि वे देवता नहीं हैं। अन्त में वे कीड़ों का आहार बन जायेंगी और देश के लिए कलंक का कारण।
72) धार्मिक मनुष्य के लिए यही अच्छा है कि उसके कोई देवमूर्तियाँ नहीं होः उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा।

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